मैं बिहार हूँ दोस्त
श्रम बेचता हूँ
सस्ता और बिना मिलावट के
शुढ्ध श्रम
परंपरा बना ली है
सदियों से जीता हूँ इसे
भूख, गरीबी, बेरोजगारी और तमाम कमियों के बीच
अपने पैरों पर खड़ा हूँ
मैं बिहार हूँ दोस्त
इमान बेचता हूँ
मेरी गरीबी के बरक्स
जो मिले करता हूँ
सफाई, झाद्दू -पोंछा से लेकर खेतों मे फसलें उगने तक
सब करता हूँ
इस उम्मीद में के एक दिन बदलेगा सब
और हम खड़े होंगे पहली पायदान पर
इसलिए वर्त्तमान के सच को
जीता हूँ
मैं बिहार हूँ दोस्त
जौहर बेचता हूँ
पूरी दुनिया में घूम कर
सीखता हूँ
और बनाता हूँ सपने
गढ़ता हूँ ख्वाब
तभी तो अपमान, जिल्लत और विरोधी नारों के बीच भी
जम कर खड़ा हूँ
पोरसे भर ज़मीन में गड़ा हूँ
मैं बिहार हूँ दोस्त
कम में जीना मुझे आता है
समय को सीना भी जनता हूँ
कठिनाइयों के बीच
एक नदी बहेगी इसका हुनर भी जनता हूँ
बीच में पड़ी कश्ती
सबको इशारा करती है
मेरी मजबूरी का
हिम्मत से लड़ता हूँ
पार ले जाना चाहता हूँ
मैं बिहार हूँ दोस्त
चक्रव्यूह में फंसा हूँ
युद्धरत हूँ
खुद बचाने के लिए
भूख से, अशिक्षा से, रोज की तंगी और बेकारी से
युद्धरत हूँ
युद्धरत हूँ
युद्धरत हूँ
............................................................... अलका
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