हमने तुमसे दो बोल मांगे थे
जिंदगी के
तुमने पूरी ग़ज़ल
लिख देंगे कहा
हमने एक टुकड़ा चाँद माँगा था कभी
तुमने पूरा चाँद ला देंगे
वादा किया
हमने ऊँगली पकड़ लो कुछ ऐसा कहा
तुमने हौले से
हाथों पे हाथ रख दिया
क्या कहूँ
ये मेरी प्रेम की समझ थी
छिटपुट सी तब
लगता है सचमुच कितने बेमानी थे
वो लफ्ज़, वो वादे वो हाथ
आज टुकड़ा टुकड़ा यादों को
पूरे दिन जोड़ती रही हूँ
वो सारे के सारे पल छिन
जो तुमने दिए थे
आज बौने लगने लगे हैं
उस सच के आगे
जिसको सालों से जिया है मैंने
इसमन के सारे तहखाने सूने लगने लगे हैं
एक छल को याद कर
जिसने कुतर डाली जिंदगी
और उसके सारे अक्स
आज सोचती हूँ
तुम न होते जिंदगी में तो
कितना अच्छा होता
कम से कम मैं
अपने पास तो होती
............................................अलका
उफ़ अलका जी कितना सही कह दिया…………दर्द ही दर्द भरा है आईने मे
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