Saturday, October 22, 2011

गद्दाफी की मौत पर

इतनी भयानक होगी मौत
कभी सोचा भी नहीं होगा उस तानाशाह ने
ना ही सोचा होगा
इतने सुरक्षित महल के बाहर
भागते भागते
यूँ दबोच लेगी मौत
असुरक्षित उसे ?
वक्त का दौर है सब और वक्त की बातें
मृत्यु के क्षण में याद आते हैं उसे
मां के शब्द, उसकी डांट और
अच्छा इंसान बनाने की
सलाहियत
फिर याद आता है
मां की हदों से निकलकर
पिता की दुनिया मे प्रवेश
पुत्र के कन्धों का इंतज़ार करती
पिता की दुनिया
याद आता है उसे
वो बन्दूक की नली पर हाथ रखना
उससे निकलती गोलियों में सुख और शांति खोजना
गर्वोक्तियों के शब्द गढ़ना
गर्व से बढ़कर अभिमान को जीना
और फिर
एक प्रेम याद आता है उसे
वो बवाले नयन
वो बावला मन
गुलाबी होठ , गुलाबी शाम
स्नेह , स्पर्श , आलिंगन , चुम्बन
और एक दूसरे में सिमट जाने की चाहत
फिर वह आगोश
आह !!
कितने ही दृश्य तैरने लगते हैं
उसकी आँखों में
तभी
सर पे तनी गोलियों के बीच उसे
एक सुखद अहसास सा
वो गर्भ भी याद आता है
जिसे तकता रहा था वो
प्रसव तक
हर दिन कामना करता जन लेने का
अपना अंश
मृत्यु के क्षण और जिंदगी की बातें ?
वह सोचता है
के तभी उसे याद आती हैं मां की सलाहियतें
कई बातों पर पत्नी का विरोध
और फिर उसे नज़रंदाज़ कर
पिता की सल्तनत फैलाना
अपनी दुनिया के दिन
मैं सम्राट
सब मेरा है , इश्वर हूँ मैं
तुम गुलाम ,
हजारों आदेश
बंदूकों की ठायं , चीख , पुखार
भीख दया और
मौत की सजाएँ
सब याद आता है
रहम के लिए गुहार करते कितनी ही
जूतियों के बीच हाथ जोड़
चीखते
उस ताना शाह को
सब याद आता है
दिन, महीने, साल
वो पुत्र , सल्तनतें
सब याद आता है
............................................. अलका

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