Monday, October 24, 2011

आज धन तेरस है

आज लिखना नहीं चाह रही थी सोचा था छ्ठ् तक कुछ नही. किंतु आज उस औरत को देख्कर कलम रुकी ही नही. लगा जैसे सब व्यर्थ की बातें हैं, ये कैसी दीवली है. पता नहीं क्या क्या ----




आज धन तेरस है
धंन धनलक्ष्मी का दिन
और वो शहर के कूडे पर चिंता मग्न
भटक रही है इधर – उधर
जैसे खोजती हो आकाश, पाताल और चारों दिशायें जैसे खोज रही हो अपने लिये गडा धन
उद्दिग्न सी, निराश नंगे पैरों से
खांचती है पूरी जमीन
और
एक एक कूडे को हाथों से छू
तसल्ली कर
आगे बढ जाती
जैसे पाना चाहती हो सोना, चांदी, हीरे- मोती
जब कहीं कुछ नहीं मिलता
बैठ जाती है हांफती
सुस्ता लेने के लिये
फिर निकल पडती है
तलाश में
कहीं कुछ मिल जाये

आज धन तेरस् है
धनलक्ष्मी का दिन
तभी देखती है -
पूरे शहर में चहल है, पहल है
धूम् है, मस्ती है, खाना है पीना है
और खूब उजाला भी
वो दूर बैठी निहारती है सब
और जुट जाती है
खोज में
इस दीवली का तोहफा
अचानक गड जाता है कुछ
पैरों में अज़ीब सा
टन्न की आवाज़ के साथ
वो झुकती है
अपने पैरों को छूती है और उछल जाती है
जैसे
मिल गय था आज वो तोहफा
अचानक
लाल रंग का एक ड्ब्बा
उठा लेती है वो
और चल पडती है घर की ओर

आज धनतेरस है
धनलक्ष्मी का दिन
................................................... अलका

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