Wednesday, October 26, 2011

एक कलंकित इतिहास

एक कलंकित इतिहास फिर लिख दिया
गाँव की चौपाल ने
सारा गाँव नपुंसक सा, मूक दर्शक बन
देखता रहा तमाशा
काली स्याही से लिखे उस अभिशप्त फैसले पर
सजा- ए- मौत का
मदमस्त पुरुषों की ताल ठोकती सेना
एक पति के अपमान करने की जुर्रत के आक्रोश में
सुनायी गयी सजा के वीभत्स दृश्य पर
अट्टहास करती रही
और स्त्रियाँ घूंघट की ओट से
बस कहानियां सुनती रहीं
उस चौपाल की


कहते हैं वो प्रेम मे थी
जी हाँ उसी 'प्रेम' में जिसपर लिखी गाथाओं का
ऋणी है समाज , साहित्य और मानवता
जी हाँ, वही प्रेम
जिसपर कवियों ने कलम तोड़ परिभाशायें दी हैं
काले किये हैं सफे
फिर ये चौपालें क्यों रचती रही हैं
रक्त रंजित इतिहास
समय समय पर
कितना विरोधाभास है हमारे दर्शन और जीवन दर्शन में
कितना विरोधाभास है हमारी मान्यता और वक्तव्यों में

स्त्री दांव पर है
कल भी थी और आज भी है
उसे सजाएँ देती रही हैं ये चौपालें
अपने गुरूर में तन
कभी जन्म लेने की . कभी प्यार करने की
और कभी अपने लिए फैसलों पर चलने की
सजाएँ और भी हैं उसके खाते में जो वो
भोगती है वो समय समय पर
इसलिए फैसले लेने से कतराती रही हैं स्त्रीयां
और सहमी सी अनुगामिनी बन
बिताती रही हैं पूरा जीवन

वह एक दारुण दृश्य था
और एक कलंकित इतिहास
समय सत्ता और मानवता के पन्ने पर
जब अपनी शर्तों पर जीने की सजा
में चार बार मौत के घाट उतारा गया उसे
और
वह बिलखती रही बिलखती रही
यक़ीनन
फिर एक बार लिख दिया गया
एक रक्त रंजित इतिहास
समय के सीने पर
अपने मद में डूबे पुरुष व्यवस्था द्वारा
स्त्री के अपमान का

.............................................अलका

फिर लिख दिया
गाँव की चौपाल ने
सारा गाँव नपुंसक सा, मूक दर्शक बन
देखता रहा तमाशा
काली स्याही से लिखे उस अभिशप्त फैसले पर
सजा- ए- मौत का
मदमस्त पुरुषों की ताल ठोकती सेना
एक पति के अपमान करने की जुर्रत के आक्रोश में
सुनायी गयी सजा के वीभत्स दृश्य पर
अट्टहास करती रही
और स्त्रियाँ घूंघट की ओट से
बस कहानियां सुनती रहीं
उस चौपाल की


कहते हैं वो प्रेम मे थी
जी हाँ उसी 'प्रेम' में जिसपर लिखी गाथाओं का
ऋणी है समाज , साहित्य और मानवता
जी हाँ, वही प्रेम
जिसपर कवियों ने कलम तोड़ परिभाशायें दी हैं
काले किये हैं सफे
फिर ये चौपालें क्यों रचती रही हैं
रक्त रंजित इतिहास
समय समय पर
कितना विरोधाभास है हमारे दर्शन और जीवन दर्शन में
कितना विरोधाभास है हमारी मान्यता और वक्तव्यों में

स्त्री दांव पर है
कल भी थी और आज भी है
उसे सजाएँ देती रही हैं ये चौपालें
अपने गुरूर में तन
कभी जन्म लेने की . कभी प्यार करने की
और कभी अपने लिए फैसलों पर चलने की
सजाएँ और भी हैं उसके खाते में जो वो
भोगती है वो समय समय पर
इसलिए फैसले लेने से कतराती रही हैं स्त्रीयां
और सहमी सी अनुगामिनी बन
बिताती रही हैं पूरा जीवन

वह एक दारुण दृश्य था
और एक कलंकित इतिहास
समय सत्ता और मानवता के पन्ने पर
जब अपनी शर्तों पर जीने की सजा
में चार बार मौत के घाट उतारा गया उसे
और
वह बिलखती रही बिलखती रही
यक़ीनन
फिर एक बार लिख दिया गया
एक रक्त रंजित इतिहास
समय के सीने पर
अपने मद में डूबे पुरुष व्यवस्था द्वारा
स्त्री के अपमान का

.............................................अलका

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