Saturday, October 29, 2011

कैसा है देश

कैसा है ये देश


अरसे बाद,
दरवाजे पर डाकिया आया है
किसी की चिट्ठी है मेरे नाम
इस बदली हुई दुनिया मे चिट्ठी किसकी होगी ?
ये बेचैनी अब भी होती है उसके आने पर
आज भी है
कभी आशंका, कभी फूल सी खुशबू
और
कभी एक शून्य उभर आने का डर
अब भी चिट्ठी ले आती है अपने साथ
एक युग था जब चिट्ठी और गाँव
साथ साथ जीते थे
चिट्ठी और भाव साथ साथ जगते थे
आज डाकिये के हाथ
इस बदल गए युग में और बदल गयी दुनिया में
दरवाजे पर एक चिट्ठी ?
एक बेचैनी के साथ
मन आज भी उत्सुक है पढ़ लेने को उद्धत
के किस भाव की होगी चिट्ठी ?
x
अरसे बाद,
अन्तेर्देशी देखी है
सहमे हाथों से उसे खोल के देखा
यह एक गाँव की चिट्ठी है
उस गाँव की चिट्ठी जहाँ बहुत कुछ होगा
नया भारत बनेगा और
कल से फार्मूला वन कारें दौड़ेंगी
सालों पहले भी भेजी थी उसने
एक चिट्ठी मेरे नाम
और लिखा था
आज गाँव में फिर पैमाईश हुई है पूरे दिन
कहते हैं यहाँ रोड बनेगे , मौल बनेगे
कई मकान और एक अस्पताल भी बनेगा
एक महीने से यही सिलसिला है ,
किसके लिए बनेगा जब हम ही ना होंगे ?
पूछता था ये गाँव
कहते हैं एक नया शहर बसेगा, लोग रहेंगे तरक्की होगी विकास होगा
किसके लिए जब हम ही ना होंगे ?
पूछता था ये गाँव
आज उसने फिर लिखी है चिट्ठी
मेरे नाम
अपनी छाती पर चलेंगी कारें इस खबर को सुन
लोग देखेंगे तमाशा उनके सीने पर बैठ इसको सुन
और वो कहीं और बसेंगे इसको सुन
अब फिर पूछता है गाँव
कितने ही सालों रोज सुबह
अपने ना होने के डर में जगता और कल होंगे के नहीं इस डर सोता रहा हूँ
कल तक सुनते थे ये देश उनका है
आज मेरी मुट्ठी भर जमीं भी उनकी हुई
और खूब तमाशा देखेंगे लोग
कैसा देश है ये ?


एक चिट्ठी और है
मेरे नाम
दर्द से भरी
यह उस नन्हे बच्चे की माँ की है
जो मर गया अस्पताल में कल
एक अनजानी बीमारी से लड़ता
तड़पकर - तड़पकर
बिना दवा, बिना इलाज़ अस्पताल की गरीबी से
ऐसा हालत कहते हैं
निरक्षर वह माँ डाक्टर का परचा ले उसे पढने की कोशिश करती है
अस्पताल की चौखट पर
सर पटक पटक चिघारती है, बिलखती और फिर
सवाल करती है
देश से, सरकार से और हमारे विकास कर रहे भारत से
हमसे , तुमसे सबसे
कि
क्यों अस्पताल बेबस हैं और सरकारें बेरहम
और हमारी व्यवस्था लचर?
कैसा देश है ये ?

तीसरी चिट्ठी उस छोटे बच्चे की है
मेरे नाम
जो एक सायकिल के टूटे पहिये संग खेलता है
गाँव की सडक् पर बूट पलिश कर
पास के स्कूल को बडी हसरत से निहरता है
और फिर रात में
आधे पेट सो जाता है
वो लिखता है
मैं स्कूल जाना चाहता हूँ
लिखना और् पढ़ना चाह्ता हूँ
हर रोज खाना चाहता हूँ भर पेट खाना
पर ऐसा नही होता
हर रोज
आधी रोती में ही
सो जाता हूँ
कैसा है ये देश ?




और अंत् में
एक चिट्ठी
उस लड्की की है
जो दुनिया देखना चाहती है
खुलकर सांस लेना चाहती है
हवाओं से बात करना चाह्ती है
मुक्त हो उडना चाहती है
डरती है अपने ही लोग से अन्धेरे में
अपनी ही वीरान सड्कों से
फैसले से , खुलकर बोलने से
अपनों से , परायों से
कहती है
कैसी है ये दुनिया
और
कैसा है ये देश?
एक बड़ा प्रश्ंवाचक चिन्ह भी
कि
कब आयेगा हमारा स्वतंत्रता दिवस


अरसे बाद,
आज इन चिट्ठियों को जोड
एक नक़्शा बना रही हूँ देश का

और सोच रही हूँ
कैसा है देश ?




............................................................ अलका

1 comment:

  1. बेहद गहन विश्लेषण किया है।

    ReplyDelete