एक शाम,,
जब उंगली उठाई थी
कुछ लिखने को, और
दर्द बयां करने के लिए
बुरा लगा था -
पिता को , भाई को, उस पूरे
गलियारे को
जो मेरी सुरक्षा की कसमें खाता था
आज
जब लिख डाला है , सब
वो सामने खड़े हैं
गर्व से कहते हुए के
हमने अपने घर से
परिवर्तन को हवा दी है
ये मेरी बेटी है जो
सामने खड़ी है
----------- अलका
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