Wednesday, September 7, 2011

एक शाम,,

एक शाम,,

जब उंगली उठाई थी

कुछ लिखने को, और

दर्द बयां करने के लिए

बुरा लगा था -

पिता को , भाई को, उस पूरे

गलियारे को

जो मेरी सुरक्षा की कसमें खाता था

आज

जब लिख डाला है , सब

वो सामने खड़े हैं

गर्व से कहते हुए के

हमने अपने घर से

परिवर्तन को हवा दी है

ये मेरी बेटी है जो

सामने खड़ी है



----------- अलका

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