Monday, September 26, 2011

मैं प्रेम में तिरस्कृत लड़की

मैं प्रेम में पगी लड़की
सब तोड़कर बंध
खड़ी थी उसके सामने
मन का हिंडोला और
छुम्म छुम्म से सपने के साथ
खड़ी थी
नेह के सारे पैमाने बटोरने के लिए

मैं प्रेम में सनी लड़की
माँ की सख्त निगाहों
को स्तब्ध कर
खड़ी थी उसके सामने
अपने इरादों के साथ
ये कहते हुए के
जीवन और फैसले दोनों
मेरे हैं और होंगे
परम्पराओं मे नहीं है मेरा विश्वास

मैं प्रेम में तिरस्कृत लड़की
छिल गयी थी
उस 'ना' की दरातों से
छन्न सा हो गया था
मन का हर कोना
जिससे रिसती है अब भी
पीर लौट आयी थी तब
मर्माहत सी
फिर
अपने पास
मैं प्रेम मे तिरस्कृत एक लड़की

......................... अलका

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