Saturday, September 24, 2011

ई जिनगी अकारथ हो गयील

1.
हर रोज ललमतिया खड़ी होती है
सुबह सुबह दरवाजे पर
मन्नी दीदी की फ्राक
भैया के हाफ पैंट उलझे हुए बालों में
छोटके बउआ के साथ
सकुचाती आँखों से मेरी तरफ देखकर
बोलती है
पेट डहकत है बड़ा भूख लागल है मलकिन
बासी रोटी चाहे दू मुट्ठी भात मिली का ?
छोटे छोटे पांच भाई बहनों की
माँ सी, बेचैन
वो बहन
हमेशा आती है बासी रोटी की आस में
चटनी आंचार मिल जाये तो
बड़ी सी मुस्कान लिए लौट जाती है
दुआयें देती
छोटके बउआ के पास

2.
कल ललमतिया की माई
बुखार में जलती
लाल लाल आंख लिये
कहंर रही थी
मैली कुचैली परदनी पहने
दरवाजे पर
मैने कहा रोज बोखार , बेमारी
और पांच पांच गो बच्चा और फेर ई पेट में?
उसकी बडी बडी आखें
दर्द से कराह उठीं
बोली -
बोटी है औरत के देह बोटी
मरद के खतिर
का कहें ए मलकिन
रोज मजूरी करत, मांग मांग खात - पहिनत
अकेल्ले जीयत
ई जिनगी अकारथ हो गयील
मलकिन
ई जिनगी अकारथ हो गयील

3.
आज ललमतिया का बाप
सफेद झक्कास कपडों में
अपनी पूरी पूरी मुस्कान के साथ
खुशहाल सा सामने खडा है
मेरे लिये
उपहार और मीठा लिये
ललमतिया भी साथ है
मनो बचपना लिये अज़ीब आंखों से पिता को
निहारती, चहकती, खिलखिलाती
जैसे कह रही हो
आज रोटी नही मांगूंगी
ना ही बासी भात
जैसे कह रही हो
मेरे पास भी बचपन है
पिता है और उसका साथ

4.
प्रश्चिन्ह लिये मेरी आंखों को देख
उसका पिता बोला
एक साल बाद आया हूँ
सोचा आपसे मिल लूं
सुमतिया बताती है
आपके बारे में
वो पेट से है और दर्द् में भी
इस् लिये आया हूँ
चार दिन की छुट्टी है
सोचा गुजार लूं कुछ दिन उसके साथ

परसों चला जाउंगा
पैसे देकर

5.
वो चला गया
ललमतिया फिर बडी होकर
खडी है दरवाजे पर
उसकी मां अंसुओं से तर – बतर
सिसक रही है
कह्ते हुए - चल गयील मर्किनौना बेईमान
चल गयील ए मल्किन
ई जिनगी अकारथ हो गयील

.......................... अलका

4 comments:

  1. गज़ब लिखा आपने अलका जी ! पढकर आँखें भर आयीं !सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि यह कविता जिनके लिए लिखी गई है उन्ही की भाषा में लिखी है आपने ! मैं इसे बहुत बड़ी सार्थकता मनाता हूँ कविता की ! गरीब दुखियारे लोगों की बात अभिजात्य भाषा में लिखना उसे व्यर्थ करना ही है ! आपका बुहत बहुत धन्यवाद !

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  2. अलका जी
    नमस्कार,

    "ललमतिया" के माध्यम से आपने नारी के उस पीड़ा का स्पंदन किया है जो अनकही है और जिसको एहसास ही किया जा सकता है. इस स्पंदन का एहसास बहुत ही दर्दनाक और दुखद है.

    राज
    लखनऊ

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  3. jab ek aurrat ki zindagi ke dard ki kasmasaahat apne aaspas sunti ya padti hoo to dimaag sunn ho jaata hai aur aankee bhar aati hai ,jaise hriday ki dhadkan mano tham si jaati hai .'lalmatia ' thek hi kehti hai ....ek aurat ki dard bhari zindagi akaarath hi jaati hai.

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