Sunday, September 25, 2011

मेरा वक्त हो चला है

(यह कविता आज बेटी दिवस पर खास उन माता पिताओं के नाम जो भूण हत्या के लिये तैयार रहते हैं)

१.
चलती हूँ माँ
मेरा वक्त हो चला है
अपना खयाल रखना
मेरी बेवक्त मौत पर ना सिसकना
सिसक ही तो सकती हो तुम
रोने की आज़ादी कहाँ है तुम्हें
पिछली बार भी तुम हलक में दबा के आवाज़ को
सिसकती रहीं थी घंटों और
तुम्हारे ही अन्दर
क़त्ल क़र दी गयी थी मैं
बडी बेरहमी से
माँ
अच्छा अब चलती हूँ
मेरा वक्त हो चला है
क्यों सहलाती हो बार - बार अपलक निहारती हो
निर्मोही बनो
मोह ना करो
मेरा वक्त हो चला है

२.
याद है पिछ्ली बार कितना चिघारी थी
रोयी थी मैं
खूब् तड़पी थी एक एक अंग कटने पर
गुहार भी की थी दादी से, बाबा से और पापा से भी
तुम तो बेहोश थीं उस छुरी, कैंची, फोर्सिप के साथ
बेजान सी
बस मह्सूस करती रही होगी
अपने अंश का अंत
और बाकी सब
इंतज़ार में थे
एक बोझ जाने के


3
अच्छा अब बस भी करो
रोना - गाना
एक कहानी सुनाऊं तुमको
जब पिछ्ली बार मैं माँ थी
और तुम बेटी
जन्म पे तेरे
बुझे मन से स्वागत किया था सबने
तीन दिन चूल्हा बुझा रहा मातम में
तेरे दादा ने बिस्तर पकड़ लिया
और दादी ने
मेरी सोयरी में धुआं और तेज क़र
सारे सोठौरे हटा लिये थे
पेट भर खाने और दूध को तरस गयी थी
तेरे बाबू तो जैसे अंतर् ध्यान हो गये थे
अपनी अम्मा और बाबू की मंशा को भाप
वो उंन के दुख मे शरीक थे और मैं
रोज छाती निचोरती तेरे पेट के लिये
जनम जो दिया था अपने टुकडे को
टूटे शरीर और हज़ार ताने
सुनती रही बेटी जनने के
कितना कहूं , का से कहूं


एक कहानी और सुन ले
अपनी हमारी
वो सदियों पुरानी
तू माँ और मैं बेटी
जनम गयी थी मैं
सबकी इच्छा के विरूद्ध
और बस क्या था
बुझा दी गयी मैं
हज़रों तरीके थे
कभी डर से
कभी बोझ समझ्
कभी अपनी ही शान में
बाबा की चौखट पे
हां बाबा की ही चौखट पे




5
अच्छा
मैं चलती हूं उस छुरी और चाकू में वक्त हो चला है माँ
अपना खयाल रखना
सबसे यूं कहना
और घूम घूम कहना
अबकी जो आउंगी
छम्म छ्म्म आउंगी
सोने और चांदी में
झम्म् झम्म् आउंगी
आशा उम्मीदों की चादर में लिपटी
बबुल के अंगना में बहुरि बहुरि आउंगी
गोदी में उनके किलक किलक गाउंगी
सपना ही साथी है
किलक किलक गाउंगी
बहुरि बहुरि आउंगी
बाबूल से ................

बस अब वक्त हो चला है
चलती हूँ माँ
अपना खयाल रखना

------------------------- अलका

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