वो खुश थे
जब मैं सुर्ख जोड़े मे थी
वो खुश थे जब तक
'उसके' साथ- साथ हंसती रही
वो खुश थे
जब मैं पेट से थी
और
वो खुश थे जब मैं
एक एक कर पूरी तरह बाँध दी गयी
पर
मैं खुश थी
अपनी कलम के साथ
क्योंकि
कवितायेँ ही
मेरा लोकतंत्र हैं
और ठौर हैं
मेरी आज़दखयाली का
...................................... अलका
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