बैरागिया नाला की कहानी बेहद रोचक है. यह बात उस समय की है जब यात्रा बहुत कठिन हुआ करती थी. लोग़ अक्सर पैदल या बैल गाड़ी से यात्रा करते थे. तब बैलगाड़ी भी वैभव का हिस्सा होती थी आम लोग़ खाने पीने का सामान लेकर पैदल ही यात्रा करते थे. इलाहाबाद और बनारस दो ऐसी जगहें थी जहाँ तीर्थ यात्री बहुत आते थे. सामान्य यात्रायें भी यहाँ बहुत होती थी. इन दोनों नगरों के बीच एक नाला पड़ता था जिसे बैरागिया नाला कहते थे. इस नाले की खासियत यह थी के इसे पार किये बिना इलाहाबाद के लोग़ बनारस नहीं जा सकते थे नहीं बनारस के लोग़ इलाहाबाद जा सकते थे. इसी नाले के पास धुनी राम के ३ दोस्त रहने लगे. ये तीनो दोस्त बैरागी के भेष में रहते इसलिए लोग़ उन्हें बैरागी कहते और नाले को बैरागिया नाला कहके पुकारते.
उन्हीं दिनों बैरागिया नाला के पास से ये ख़बरें आने लगीं के वहां यात्रियों को लूट लिया जा रहा है. कौन लूट रहा है ये लम्बे समय तक राज रहा. लोग़ एक तरफ तीर्थ यात्रा का मोह नहीं छोर पाते और दूसरी तरफ अपने लुटने को भगवन भरोसे डालकर यात्रायें करते रहते. एक दिन यात्रियों के एक समूह ने कुछ गौर किया. चूँकि उस समूह ने उस दिन बहुत सावधानी नहीं बरती थी इसलिए उसने यात्रा करने वाले दूसरे समूह से इसपर चर्चा की. धीरे धीरे यह बात आग की तरह फ़ैल गयी औ लोगों ने तय किया कि बैरागिया नाला की तरफ से जाने वाले लोगों को इस धटना पर ध्यान देने को कहा जायेगा. अगले समूह ने ध्यान दिया औ पाया कि नाले पे रहने वाले ३ साधू ही लोगों को लूटते हैं. लोगों ने उनको सबके सामने लाने की योजना बनाई और चल पड़े नाले की ओर. यात्रिओं ने तीन समूह बनाये ऐसा इसलिए क्योंकि नाले के संरचना कुछ इस तरह की थी के एक बार में कुछ खास संख्या में ही लोग़ जा सकते थे. जैसे ही नाले के अन्दर पहला समूह दाखिल हुआ तीनो अपनी आदत के मुताबिक लोगों को लूटने लगे. पहले समूह ने अपनी योज़ना के अनुसार बाहर के समूह को आवाज़ दी और बाहर से बारी बारी से सारे यात्री अन्दर आ गए और तीनो की खूब पिटाई की और बैरागिया नाले का आतंक ख़तम हुआ.
इस पूरे घटना क्रम में उन तीन चोरों द्वारा यात्रियों को लूटने की तकनीक इस घटना का सबसे रोचक हिस्सा है. तीनो चोर्रों ने उस नाले पर चोरी की एक रणनिति बनाई थी. एक चोर 'दामोदर' चिल्लाता जब यात्री उसे आते हुए दिख जाता.दामोदर का अर्थ था जिसके उदर में दाम हो - मतलब यात्री मालदार है. दूसरा चोर चिल्लाता 'नारायण' मतलब यात्री नाले के भीतर पहुँच गया है. नारयन क अर्थ था यात्री नारी मे आ चुक है. यनि नारायन . तब तीसरा आवाज़ देता बासदेव मतलब अब मारों (बासदेव का मतलब था चोरों के लिए के अब बांस से मारो). लोगों ने जब चोरों के ही तरीके से उन चोरों को मारा तब ये कहावत चल पड़ी -
बैरागिया नाला जुलुम जोर
नव पथिक नचावत तीन चोर
जब एक एक पर तीन तीन
तब तबला बाजे धीन धीन
(ये घटना मुझे मेरे पापा ने सुनायी थी और मैं आप सब से इसे शेयर क़र रही हूँ )
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Bahut Umda .. Accha laga
ReplyDeletePuri kavita sunana chahata hu
ReplyDeleteमेरे स्वर्गीय दादा जी मुझे ये कहानी सुनाया करते थे . जब तबला बाजे धीन धीन तब एक एक पे तीन तीन तो हमारी जुबां पर ही चढ़ गया था . शेयर करने के लिए धन्यवाद. पुराणी यादें
ReplyDeleteआज सोचा कि इसके बारे में जानकारी करूं तो अच्छा लगा कि आपने इस बात को लिखा।धन्यवाद मैं स्वयं73 वर्षीय वृद्ध हूं। रवीन्द्र दीक्षित
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी दी है
ReplyDeleteमैं भी अपने दादाजी से बचपन में सुना करता था एक कहानी मुझे भी रोचक लगी थी आज याद आने पर हम सबों की मुलाकात हो गई धन्यवाद
ReplyDeleteयह है वह कविता जो आपने लिखी है -
ReplyDeleteबैरगिया नाला जुलुम जोर/जहां रहत साधु के भेस चोर
कुछ सेठ महाजन जमींदार/बैठे नाले में रंगे सियार
भारी तोंदें सब तन विशाल/मुँह बाए आंखें लाल लाल
कुछ पर बूटी का चढ़ा रंग/कुछ में सुलफे की ही उमंग
कुछ चढ़ा गए थे कई जाम/लेकिन सब जपते राम-राम
आती हैलेट की बहुत याद/पूरी न हुई दिल की मुराद
“तुम गए यहां ढह गया धर्म/धो गई प्रजा की लाज शर्म
संस्कृति को गहरी लगी ठेस/देखो हमने यह रचा भेस”
यों सोच सोच मन में उदास/ठग लेते थे भारी उसांस
पीनक में तब कह चला एक/”मेरे मन में है यही टेक
हम शोक मनाएं इस प्रकार/सबके बस काले हों सिंगार
काले झंडे काली पुशाक/मुँह पर भी काली मलें राख
यों चमकें सब धर्मावतार/भारत के सच्चे कर्णधार”
बोला नंबर दो भृकुटि तान/ “नामर्द सभी हिंदुस्तान
वरना बर्मा का सा जवान/ जिसने मारा है आंगसान
नेहरू पर भी पिस्तौल तान/हिंदूपन की रखता न आन
तब हो जाता सब सहज काम/जपते हम सब मिल रामनाम”
आशा से आँखें और फाड़/खूनी कुत्ते सी खोल दाढ़
बोला साथी ठग यों विचार/”पद के लायक तो जमींदार
आखिर नेहरू को क्या शऊर/वह पद मैं पाऊंगा जरूर
मिलने आएगा शहरयार/कह दूंगा उससे खबरदार
क्यों आया तू हिंदोस्तान/ जावा में हैं सब मुसलमान
डच को मैंने जब दिया तार/कर दो सब म्लेच्छों का संहार”
इतने में आहट पड़ी कान/आते थे नाले में किसान
संग में उनके थे कुछ मजूर/जब देखा अब वे नहीं दूर
सब बैठ गए ठग यथास्थान/चट आंख बंद कर किया ध्यान
कनखी से उन सबको निहार/पहले ठग ने मन में विचार
श्री दामोदर का लिया नाम/यानी है इनके पास दाम
बोला नंबर दो वासुदेव/अब बांस मारकर छीन लेव
तब शांति शांति बोला महंत/इतनी जल्दी मत करो संत
देखी जब यह सुंदर जमात/तब उन सबकी भी रुकी बात
क्या भव्य दिव्य भूधराकार/बैठे सबके सब निर्विकार
कच्छप वराह फिर देह धार/मानो फिर हरने चले भार
ठग समझ गए अपना प्रभाव/सोचा अब तो चढ़ गया दांव
मूंदी आंखें मुँह लिया खोल/फूटे उनके ये मधुर बोल
“हा हा कलियुग में घोर पाप/सबको ईश्वर का लगा शाप
है अन्न वस्त्र सबका अकाल/भूखी है जब जनता बेहाल!”
यह सुन मन में समझे किसान/इनको ही सच्चा मिला ज्ञान
बोला उनसे ठग जमींदार/”संसार सभी है यह असार
बस धर्म, धर्म ही एक सत्य/बाकी धन संपद सब अनित्य
हम धर्म यज्ञ करके महान/जीतेंगे सब हिंदोस्तान
लंका जावा काबुल इरान/इससे तुम सब धन करो दान”
तब एक बहुत बूढ़ा किसान/बोला – “देते देते लगान
घर में खाने की नहीं धान/हो गए सभी चौपट किसान
अब धरम-करम का क्या विचार/लाकर दें क्या तुमको उधार?”
बोला तब ठग जो पिए जाम/”ऐसे चलने का नहीं काम
जब करना ही है धर्म काज/तब मारपीट से कौन लाज?”
दोनों हाथों पर दिए भार/अब उठे सेठ और जमींदार
फैला अपनी बाहें विशाल/लेने को आगे बढ़े माल
बूढ़े को तब कुछ हुआ ज्ञान/पहचाना सा ठग पड़ा जान
“यह तो अपना ही जमींदार/आया है कैसा भेस धार”
बोले मजूर- “ये सेठराज/ आए हैं करने धर्म काज
तब क्या करना ज्यादा विचार/आगे बढ़कर सब करो वार”
फिर क्या था अब तो एक साथ/बढ़ बढ़ कर पड़ने लगे हाथ
आई कथकों की बात याद/बरसे थे घूंसे और लात
बजता था तबला धीन धीन/थे एक एक पर तीन तीन
पहले सा ही फिर चढ़ा ताव/बरसाए सब पर बिना भाव
उड़ गया धर्म का कहीं भूत/झर पड़ी सभी सिर की भभूत
व्याकुल थल थल तोंदें संभाल/दुल दुल ठग दुल्की चले चाल
अब तो कायम होगा सुराज/ठग बटमारों का नहीं काज
चल पड़ी राह है बंद शोर/बैरगिया नाला जुलुम जोर
Kya ap iski pdf ya link bhej sakte hai. Main is pustak, nam malum nhi, ko dekh skun. Meri dadi yhi kavita ki kuch dusri lines sunati hai.
DeleteMy Gmail is komalistic@gmail.com
Deleteये किस्सा बचपन में सुना था। मगर आज पूरा पढ़कर बहुत
ReplyDeleteअच्छा लगा,और हसरत पूरी हो गई।बहुत बहुत धन्यवाद।
कुछ पंक्तियाँ याद हैं:
ReplyDeleteबैरगिया नाला जुलुमजोर
जहँ बसैं साधु के भेस चोर
जब दम्मोदर कहि लेत नाम
तब जानत याके पास दाम
जब बासुदेव महि लेत नाम
तब बाँस मारि छीनि लेत दाम
दो पंक्तियां और याद आईं:
ReplyDeleteजब तबला बाजै धीन धीन
तब एक के ऊपर तीन तीन
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ReplyDeleteThanks for giving so much information my I heard it from my father when I was a chil. Now I am 71. My father studied in allahabad university in 30s.
ReplyDeleteये कहानी मेरे पिताजी ने मुझे सुनाई। आज हम इसकी बात कर रहे थे। बहुत रोचक किस्सा है, मेरे हिसाब से इन 3 ठगों को पकड़ने के लिए पुलिस के नौं आदमी, 3 टीम्स में गये और तबले के धीन धीन बजने के सिग्नल पर एक एक ठग पर तीन तीन की टीम ने धावा बोला। धन्यवाद
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