Wednesday, September 28, 2011

बेचारा कवि

एक बड़ा कवि
गिरा पड़ा धडाम से
और पहुँच गया
सबसे निचली पायदान पे
मजबूर था दिल से
और पैदल दिमाग से
बेचारा
पहुँच गया कामरेडों के गाँव में
उलझ गया मन के जाल में
एक दिन
गुलाबी पग्ग वाले कामरेडों के सरदार ने
फैसला सुनाया बोला
तुन्हें पता नहीं
इस दुनिया के भी कुछ उसूल होते हैं
जात पात और दीन इमान होते है
ऐ ब्रह्मन
बेटियां हमारी भी नाक होती हैं
एक बात और सुन
तेरा कवि कर्म हमारी थुन्नी पर खड़ा है
क्या तू हमारी व्यवस्था से बड़ा है ?
सर पटक कर मर गया कवि
कामरेडों के गांव में
सब हाथ से गया
और आ गया निचली पायदान पे
............................... अलका

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