Saturday, January 7, 2012

कहो ना ऐसा क्यों है ?

कल मेरे एक मित्र ने कहा कि कभी आपने प्यार के अह्सास की कवितायें लिखी हैं ? फिर कहा आप दर्द ही लिखना चाहती है बस. क्या जवाब देती मैं चुप थी. सोचती हूँ कविता और विचार दोनो वक्त, अनुभव और उससे जुडे सरोकार का आइना है. आप जब जैसे जैसे अनुभवों से गुजरते हैं वही आप लिखते हैं. यह एक बहुत पुरानी कविता जब पढती थी तब लिखी थी आज आप सबके सामने रख रही हूँ इस खयाल से कि पसन्द आयेगी. हाँ एक बात ये कि मेरा मन तब भी सवाल करता था और अब भी करता है. प्रस्तुत है मेरी कविता आप सब की नजर --




तुम जब अपनी नर्म आंखो से
देखते हो मुझे
मन की जैसे सारी सांकलें खुलकर
बिखर जाती हैं खुद ही
पायलों की रुन झुन सी आवाज आती है
जैसे हौले से हवा गुजरी हो
तुम जब कहीं मेरी आंखो के सामने से
गुजर जाते हो रस्ते में तुम्हारे पीछे चलने को पाँव थिरक जाते हैं मदहोश से
जब भी आवाज सुनती हूँ तुम्हारी
लगता है पुकारा है मुझको ही
यह मेरे अहसास नयी कोपलों से
अंखुआये हैं
तुम्हारे देखने के बाद ही
कहो ना ऐसा क्यों है ?
कि जाग उठती हूँ बेवक्त
गुनगुनाती हूँ एक गीत
नया नया आंखें चुराती हूँ माँ से
सहम जाती हूँ पिता से
भाइयों से दूर
गुम रहती हूँ
चाँद सितारों में बोलो ना क्यों हर तरफ बस हम तुम हैं? जैसे आदम और हौवा
जैसे शिव और शिवा
बोलो ना क्यों?

....................................... अलका

4 comments:

  1. अलका जी किशोरावस्था के अखुआए हुए प्यार के ये गीत बताते है कि आज के दर्दिले यथार्थ परक रचनाओ का राज क्या है । धन्यवाद

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  2. प्रेम तो अहसास है जब भीगेंगे तभी उपजेगा ना…………बेहद खूबसूरत भावाव्यक्ति।

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  3. प्रेम करती हुई लड़की :) खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय अलका मेरी मंगलकामनाएं ..सतत लिखो यश पाओ ...

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  4. yr bewaqt jaagna ...gungunana ..aankh churana ...gum ho jana .....ye ve saari seedhiyaan hai ....jinke paar ....prem hai ....waah

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