हमारे देश में
एक पुत्री का पिता
ऐसे चित्रित किया जाता रहा है
जैसे सबसे बेचारा प्राणी हो दुनिया का
और बेटियां ऐसे जैसे सबसे बेबस और् दुखियारी जीव हों
दुनिया की
जब भी सोचती हूँ ठिठक जाती हूँ
पिता के बारे में
कई बिन्दुओं पर रुक रुक कर सोचती हूँ
सवाल करती हूँ उनसे भी , खुद से भी
और पूरी दुनिया से
ऐसा क्यों है ?
जब भी देखती हूँ पिता को
लगा है एक वक्त तक
मन की चौखट पर दरबान् से खडे रहे हैं
जब भी सोचती हूँ लगता रहा है
जैसे उनकी आंखें कुछ तलाश रही हैं
जैसे कोई ऐसा जो पुल बन सके हम दोनो के बीच
जब भी देखती रही हूँ आशा से उनकी ओर
उनकी आंखें जवाब से बचती रही हैं
चुप रह जाती हैं मेरे सवालों पर
जैसे बच रही हैं मुझसे
जैसे चोरी कर रही हों
मेरे जन्म पर उदास हुआ होगा उनका चेहरा
पता नहीं
पर मह्सूस करती हूँ उनके अन्दर एक हूक आज भी
तब जब मेरी सफलताओं पर हुलस कर कह उठते हैं
‘’ काश तुम मेरा बेटा होती”’ यह वक्तव्य अन्दर तक धंस जाता है
बहुत कुछ बजता रहता है अन्दर देर तक
जैसे तीर सा कुछ चुभा हो
उनकी ऐसी ही कुछ आदतें
मुझे संतान के दायरे से निकाल बेटी बना देती हैं
और मैं सवाल पर सवाल के साथ
दूर खडी समझती रहती हूँ
बेटी होने का अर्थ कि
मैं और वो बहुत करीब हैं दिल के
पर विचारों से कितने दूर
कितने करीब हैं रिश्ते में
सम्बन्धों में कितने दूर
याद आते हैं कुछ पल छुट्प्न के
तब हमारे बीच रिश्ते
तक कितने सरल थे जब मैं तोतली जबान में सम्वाद सीख रही थी
तब भी सरल थे जब स्कूल में कदम रखा था और तब भी सरल थे जब 8 वीं में गयी थी
पर 10वीं की दहलीज ने जैसे 10 मत्भेदों की नीव रख दी हमारे बीच
जैसे 10 पर्वत श्रृंखलायें
मेरे और उनके बीच अब भी एक दरार है
जिसे भरने के एक तरफा प्रयास में जुटी हूँ
कि समझा सकूँ उनको
बेटी का मन
उसका आकाश
उसकी दुनिया
और उसके कदमों की भाषा भी
जानती हूँ एक दिन उनके मन के अन्दर भी विचारों की कुदाल चलेगी
उस दराद को भरने के लिये और तब तक
चलाती रहूंगी अपनी
छोटी सी कुदाल
उस दरार को पाटने के लिये
यही होगी हमारे बीच
परिवर्तन की बयार
........................................ अलका
अलका जी पहले तो लोहड़ी और मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें.....
ReplyDeleteआपकी पंक्तियाँ तो बिलकुल ऐसी हैं जैसे किसी पिता ने अपने मन में होने वाले मंथन से सीधे आपकी क़लम से निकाली हो ..
बहुत बढ़िया लिखा बधाई...
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dil ko chhoo gayi rachna ... !!
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