मेरी एक छोटी किताब देखोगे?
जिन्दगी तमाम देखोगे ?
जहां कैद हैं हम, तुम और्
वो लम्हें
जिन्हें जीने से पहले कितना
मह्सूस किया था हमने कतरा - कतरा डूब डूब कर
जिया था हमने
वो वक्त , वो दिन, वो रातें
पढोगे ?
जहां हर्फ - हर्फ बिखरी हैं पूरी
एक जिन्दगी मैं, तुम और तमाम सपने
आओ ना फिर लौट कर चलते हैं उसी देश
जहाँ लरजता था, बरसता था बस
प्यार ही प्यार्
कदम दर कदम
पढोगे पन्ना - पन्ना जिसे
लिखा है कई बार मन से
कई बार खुशी से
और कई बार आंखों में आंसू भर
कई बार् पहरों बैठी रही पुराने वक्त मे पड
बतियाती रही तुम्हीं से
पलट पलट कर पन्ने पुराने
यादों की चिन्दी चिन्दी जोडती रही हूँ सालों
तब लिखी है ये किताब देखोगे?
कितने ही तो पन्ने बचे रह गये हैं कोरे ,
कुछ आधे – अधूरे
मेरे सारे सवाल देखोगे? जिन्दगी का हिसाब देखोगे?
मेरी एक छोटी किताब देखोगे? ...........................................................अलका
BÀf LXûMXe Àfe dIY°ff¶f ¸fZÔ ¶fOÞXe A¨LXe ¶ff°fZÔ W`ÔX.
ReplyDeleteइस छोटी सी किताब में बड़ी अच्छी बातें हैं.
ReplyDeletebahut hi umda likha alka ji ,aap ka blog achcha lga....
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeletebahut bhaav pravan. panktiyaan hain...hriday vidaarak pustak kathaa hai...gopaal
ReplyDelete