माना कि
हम
उसे पूजते रहे हैं सदियों
पर
अब भी सब अनजान हैं
कुछ बातों से
और सबके नाम लिखी उसकी एक पाति से
जिसमें लिखा है
उसका बचपन , यौवन और सुनहरे दिन
अंतिम अध्याय
अथाह दर्द और
अग्रह से भरा है
यह वसीयत है एक नदी की
जिसे पढकर
गयी थी उसके पास मिलने
हुलस कर नहीं आयी वो
मेरे पास पहले की तरह
दूर से ही
घुटनों पर खडी हुई
निहारा
और वहीं पसर गयी
इतनी वेदना !!
इतना अश्य दर्द !!!!
सोच ही रही थी कि उसने
बुलाया, कहा कि
फुर्सत से आओ
तो कभी बात हो
दिल खोलकर
तो दिखाऊँ अपना जख्म
मुझे पूजने से पहले इसे
देखना जरूर
एक बार
यह भी देखना कि
इतने साल कैसे रही हूम मैं
और कितना सहा है
व्यवभिचार
माँ थी मैं ऐसा सब कहते थे
फिर भी बालात होता रहा ये
अत्याचार
मुझे पूजने से पहले
सुनना जरूर एक बार
जानती हूँ मृत्यु के कगार पर हूँ अपनी पीडा से अधिक इस पीडा में हूँ
कि मेरे जाने के बाद फिर जुलसेगी ये भूमि
और इंतज़ार करना होगा
सगर के पुत्रों को
सदियों एक भगीरथ का
.......................... अलका
अलका जी एक बार तो लगा कि इसमे कुछ रहस्य छिपा है ,ध्यान से देखने पर पता चला की जख्म इतना गहरा है ,जितनी गहरी नदी भी न होगी ,मानो कह रही हो देखो मेरे जख्मो को पहले,..... पूजन बाद मे करना ,। आदमी ने नदी की पवित्रता को इतना प्रदुषित कर दिया है कि नदी दर्द से कराहने की स्थिति मे नही दिखती और स्वय्म को पूजवाने से मना कर देती है ।
ReplyDeleteक्या कहने,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
excellent kuch aisa hi dard nari ka bhi hai aur nadi ka bhi hai jiwan sahkti hone ke karan sabla hain par abna di gayi abla hain
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
क्या बात है ...वाह
ReplyDeleteगहन भावाभिव्यक्ति..... बहुत उम्दा रचना
ReplyDeleteगहन भावों को संजोया है इस नदी की वेदना में ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteगहन भाव संयोजन लिए हुए ।
ReplyDeletebahut hi umda rachna hai bdhai aapko
ReplyDeleteनदी की व्यथा को मार्मिक शब्द दिए हैं आपने।
ReplyDeleteसंदेश देती हुई सार्थक कविता।
जीवन के सत्य से जुड़ा संदेश, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteसोद्देश्य सार्थक रचना ....उत्तम
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