Sunday, January 8, 2012

कुछ गुण सीखे थे उससे

इस बार सर्दी में माँ को खूब याद किया
कुछ गुण सीखे थे उससे
विरासत में
सर्दी से लडने के , उससे निपटने के
उसने भी सीखे थे अपनी माँ से
उसकी माँ ने अपनी माँ से
ऐसे ही पिढियों ने पिढियों से
कुछ गुण सीखे थे
परम्परा के नाम पर
उस गुण को आजमाया इस बार
जैसे दूध में हल्दी, जैसे शह्द और अदरक़
जैसे सोंठ, तुलसी, कुटकी
और जौरांकुश की पत्तियाँ
सब काम आती हैं सर्दी से लडने के
माँ के इस ज्ञान में अज़वायन भी थी
और काली मिर्च भी
एक काढा था और हींग भी
जो सर्दी को शरीर से खींच
चुस्त कर देता है तन को
इस बार सर्दी में उसकी कही बहुत बात
याद करती रही और आज़माती भी रही
बार बार
क्योंकि बेअसर हो चुकी थीं डाक्टर की अंग्रेजी दवायें
और बेअसर हो चुका था कफ सीरप
हर कैप्सुल के हो रहे थे साइड इफेक़्ट
बस याद आ गयी माँ और उससे सीखे गुण
कुछ नुस्खे जो असर कर गये
माँ से,
वह बांट गयी है इसको इस विश्वास से कि मैं भी
बांट दूंगी इसको ताकि चलती रहे ये परम्परा
माँ के नाम पर
.................................. अलका

1 comment:

  1. अच्छी कविता ! माँ के अनुभव कभी गलत नहीं होते ! इनमें और कुछ जोड़ें और आगे बढायें

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