Tuesday, January 17, 2012

एक गुजारिश है मेरी

हर कलम से एक गुजारिश है मेरी
जब भी रहना किसी हाथ
उतरकर रुह में उसकी जिन्दगी कुछ ऐसे लिखना
कि जब भी पढे कोई आंख या पलटे पन्ना
तो हर लफ्ज़ को समझे
किसी जिद की तरह

जब भी भूख लिखना तो लगे पेट डहकता है मेरा
गरीबी लिखना तो लगे मेरे अपने हैं बिना रोटी के

जब भी लिखना कोई नज्म कोई गीत प्रेम का लिखना
दोस्त मेरे उस नज़्म के मायने लिखना

बच्चे लिखना तो दूध और दाना लिखना
नगे फिरतों का आसरा भी लिखना

जब कभी इससे कोई औरत लिखना तो लगे खडी बराबर में
वो जो जीती है, उसके जीवन के मायने लिखना

देश लिखना तो कई खांचे गढना
नेता लिखना और उनका बहकना लिखना

मैं बहुत दूर में बैठी समझ् रही थी तुझे
तब ही जाना कि अब क्या क्या लिखना

कुछ आग लिखना है थोडा पानी भी
रात भर बरसी बूँदों का काफिला लिखना

तू कलम है और ये जिद है तेरी
ऐसा ही कुछ फलसफा लिखना

यह लिखना जरूरी है कि यह दौर है ऐसा
हर्फ हर्फ इस दौर का माजरा लिखना

जब भी इतिहास इस दौर का देखे दुनिया
एक तेरा ईमान जिन्दा है लिखना

..................................................अलका

2 comments:

  1. अलका जी धन्यवाद ,आपने लिखने के अच्छे पैमाने बताए है ।नये लिखने वालो के लिये आपके मनुहार के गहरे मानदंड बहुत मायने रखते है ।

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  2. सभी लेखनधर्मियों के लिये आवश्‍यक संदेश है यह, इसके बिना अधूरा है लेखन.

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