एक और बहादुर शाह
गद्दी नशीन है और लिख रहा है देश की तकदीर
उधार में ली गयी कलम से
उस कलम की स्याही भी उधार की ही है
जो अर्थशास्त्र को नये तरीके से परिभाषित करती है
इस परिभाषा के सारे शब्द काले और सारे सफे चमकीले दीखते हैं
उस चमक के दीवाने लोग पढ नही पा रहे काले शब्दों को
क्योंकि इस बार इस बूढे बहादुर शाह के पीछे खडी हैं शक्तियां देश के भीतर भी और बाहर भी
और वो दे रहा है दस्तखतों का तोहफा कभी इसको कभी उसको
इस बार का बहादुर शाह दो गज़ ज़मीन के लिये गुहार नही करेगा
ना ही इधर - उधर देश के बाहर दफ्न होने पर आंसू बहायेगा
क्योंकि उसकी दाढी कई तिनको से भरी है जिसे वो सहेज़ के बान्धता है बार बार
ताकि लोग भटकते रहें कई गुफाओं में
अन्धेरी गलियों में
ठांव ठांव
और वो कलम चलाता रहे देश की गर्दन पर
और लिखता रहे देश की तकदीर हाथ मिला – मिला
...............................................अलका
मारक शक्ति संपन्न है .. आपके शब्द ...
ReplyDeleteअलका जी शुक्रिया मुझे आपका ब्लाग मिल गया ।
ReplyDeleteइस रचना मे जफर के आशय से आपने मौजूदा परिस्थितियो का सुन्दर भाव अन्कित किया है ।अच्छा लगा।