पिता और पुत्री का सम्बन्ध
वक्त की रेत पर
भावनाओं में उलझी
इक टेढ़ी मेढ़ी किताब है
इक जटिल अनुबंध
जिसपर अबोध दस्तखत के साथ
पढ़ते - पढ़ते
जवान हो जाती हैं बेटियां
और तब भी रह जाता है कुछ
अनसुलझे सवाल की तरह
यह सम्बन्ध जैसे इक बहता हुआ झरना है
जो तब्दील होता जाता है इक
बड़ी सी नदी में
और जीते जी इसे पार करने का साहस
पैदा करना होता है
बेटियों को अकेले ही
अपने आत्म विशवास के रथ पर चढ़ कर
पर अक्सर भावनाएं इस पर चढ़
लगाम कसती हैं
पिता के साथ बेटियों का सम्बन्ध
जैसे इक गाथा है
किश्तों में लिखी इक किताब
जिसके कई पन्ने पूरे तो
कई आधे -अधूरे
बेटियां इस किताब के पन्नों को
पढ़ती और स्तब्ध होती रहती हैं
उम्रभर
कई बार यह सम्बन्ध
आकाश में चमकते झिलमिल तारों सा
लगता है
जिसे निहारते - समझते
आँखों में उतर गए आंसुओं के साथ
बेटियां बांधती और सहेजती रहती हैं
वक्त के कुछ पन्ने
इक अर्थहीन और लाचार सम्बन्ध भी है
पिता और पुत्री का
जो लाचार सा चलता है उम्रभर
कभी चट्टान सा पिता
मोम की तरह पिघलता रहता है
जैसे बेटियां कारण हों लाचारगी का
जैसे पीड़ा हों उम्रभर की
जैसे
मरते हुए सम्बन्ध का मरता हुआ
पन्ना हों
सच कहूँ तो
बदलते वक्त के बदलते पिताओं में
अब भी बचे हैं
शेष के अंश
उसे वो अब भी सहेज रहा है
और
बेटियां अब भी पढ़ रही हैं
इक टेढ़ी किताब
सीधा समझ समझ
.......................................अलका
'सच कहूँ तो बदलते वक्त के पिताओं में अब भी बचे हैं शेष के अंश' ..बेशक , और ये अनकहा बस हम बेटियाँ ही जान पातीं हैं ..बधाई मित्र.. ये सफर चलता रहे !
ReplyDeleteबहुत सही कविता की है जो भावनाओं को दबाते-दबाते रहती है अंतिम सांस तक !
ReplyDeleteअकेले में आसूं बहाना और महफ़िल में मुस्कुराना,
ReplyDeleteबेटी हो तो ऐसे ही जी कर हर रिश्ते हो निभाना !!! आशीष प्रखर
बेहद गहन भावो का समावेश्।
ReplyDeletebahut hi achchhe vishay par aapki kavita hai..................jo ki bhavana pradhan hai
ReplyDeleteयह आपकी बहुत अच्छी कविता है पुरी तरह से दिल मे उतरने वाली । शुक्रिया आपकी सोच से जुदी उस कलम को जिसने ये शब्द उकेरे है सुफ़ैद से कागजो पे ।
ReplyDeleteयह आपकी बहुत अच्छी कविता है पुरी तरह से दिल मे उतरने वाली । शुक्रिया आपकी सोच से जुदी उस कलम को जिसने ये शब्द उकेरे है सुफ़ैद से कागजो पे ।
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
क्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
पिता पुत्री का जटिल अनुबंध सा रिश्ता अबूझ होकर भी जाना पहचाना !
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeletebahut acchi abhiwayakti...
ReplyDeleteअति उत्तम रचना...:-)
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
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