Saturday, November 5, 2011

'पेट्रोल' के दाम बढ़ गए हैं

गुनगुनी धूप में सड़क के किनारे
रोज जलते हैं कुछ चूल्हे
उन सिरकियों के पास जो उन मेहनत कशों की है
जो बनाते हैं ताज, संसद बहुमंजिली ईमारत और हजारों कोठियां
पर अपने लिए इक घर नहीं बना पाते
और बिखरे रहते हैं बड़े शहर की चकाचौंध में
इधर - उधर
आज सुबह सुबह इन्हीं सिरकियों के बसेरे में
एक चूल्हा इंतज़ार में था
उन चूड़ियों वाले उस हाथ का जो सारी ममता ले
जोरेगी इक आंच परिवार के लिए और सेंकेगी कुछ
रोटियां सोंधी सोंधी
पर
आज सुबह सुबह ही वो
सर पर हाथ रख सुन रही थी
समाचार
कल रात थकी मांदी सो गयी थी जल्दी
काम पर जाना है कह
क्या हो गया है इसे
चूल्हा सोच में था
और मालकिन सोच में थी के
क्या बोल रहे हैं देश के प्रधान और क्या होता है
डीरेगुलेशन


'पेट्रोल'
क्या करूँ इसका
हर रोज उछल जाता है और मेरा घर
कहीं रुक कर गिनने लगता है
हाथ में आने वाली महीने की रकम
और उनके चेहरे पर उभर आतीं हैं कई लकीरें
आड़ी - टेढ़ी
उनके चेहरे का भूगोल बिगड़ जाता है
और मेरे लिए खुल जाती है फिर से
अर्थशास्त्र की किताब जिसे
हर बार पेट्रोल की बढ़ी कीमत के साथ
समझती हूँ घंटों
इस साल ११ बार उछल चुका है और मैं हर बार
समझने लगती हूँ इतिहास , भूगोल और अर्थशास्त्र
मैं तो गृहविज्ञान की छात्र थी
क्या जानू अर्थ शास्त्र
पर इस साल सचमुच समझ गयी हूँ
पूरा का पूरा अर्थशास्त्र
देश के प्रधान का
डीरेगुलेशन फंडा भी

३.
सदियों गाँव मस्त थे
अपनी दुनिया में सारे तीन तिकड़म से
अनजान
सुबह की पहली किरण के साथ उठ हर रोज
गढ़ते थे अपनी किस्मत
आज उनके माथे पर भी बल हैं
होठों पर हजारों गलियां
कभी अपने पर, कभी अपनी बेबसी पर
और कभी अपनी ही चुनी सरकार पर
फिर बढ़ गए पेट्रोल के दाम
जैसे हवा हो गयी थी खबर
चर्चा गरम थी चौपाल में
के
अब डीज़ल के भी दाम बढ़ेंगे
ऐसा देश के प्रधान कह रहे थे
सब समझने को आतुर थे
डीरेगुलेशन का मर्म
और सारी की सारी औरतें हैं यहाँ
बेखबर

४.
देश के सन्नाटे को चीरती
एक गाडी अभी अभी गुज़री है
बेधड़क, बेख़ौफ़ और बिना चिंता
कुछ गुलाबी लाल चेहरों के साथ
जैसे सारी मलाई इनके खाते में हो
जैसे पेट्रोल इनके कब्जे में हो
डीज़ल बांदी हो
महंगाई इनके चरण में बैठ भजन गाती हो
जैसे सारा रिमोट वो लिए बैठे हैं
तभी तो
वो कहते हैं तो वो बोलते हैं
वो लिखते हैं तो वो गाते हैं
वो देते हैं तो वो पढ़ाते हैं
डीरेगुलेशन के मायने
देश को, जहाँ को
और कोने में पडी वो बुढिया
गरियाती है
ये मुआ क्या समझा रहा है
अलिफ़ बे पे ?

................................................अलका

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