Monday, September 26, 2011

कवितायेँ ही मेरा लोकतंत्र हैं

वो खुश थे
जब मैं सुर्ख जोड़े मे थी
वो खुश थे जब तक
'उसके' साथ- साथ हंसती रही
वो खुश थे
जब मैं पेट से थी
और
वो खुश थे जब मैं
एक एक कर पूरी तरह बाँध दी गयी
पर
मैं खुश थी
अपनी कलम के साथ
क्योंकि
कवितायेँ ही
मेरा लोकतंत्र हैं
और ठौर हैं
मेरी आज़दखयाली का
...................................... अलका

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