Wednesday, September 7, 2011

मैं यही हूँ

नीड़ है, निर्माण है, रिश्ते हैं और चूल्हा है.

यही मेरी दुनिया है,

ज़माने से बताई गयी.

चिपक गया है ये कारोबार बोझ सा मुझपर

बचपन था, माँ थी और एक डर

बैठा सा,

ऐसे ही तराशा गया जो सपनो के पर फैले

यही दास्ताँ है औरत की जो बनाई गयी

कलम थी, पन्ने थे, एक अहसास

निकलने को बेताब

लिखा है जो कुछ

सच है, परत -दर- परत

छुपा है जो कुछ समझ सको तो निकालो

शब्द हैं, भाव हैं, मायने हैं बहुत

मैं औरत हूँ लिख रही हूँ

अपना बयान

दर्ज करना हो करो न करो

चूल्हे का और मेरा रिश्ता

मैं यही हूँ

एक आंच है ज़माने से मेरे साथ



--------------------- अलका

1 comment:

  1. hmmm !! isay poora padne me bahut anand milega.. wahh kya baat hai !!!!!!!!!!! Baala

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