Sunday, October 23, 2011

वो मर गयी

वो मर गयी
चर्चा है शहर में
हर आंख में सवाल हैं औ हज़ारों ज़वाब
जैसे किस्सा गोई हो कोई
एक कुशल बिटिया को एक अंजान के हाथों ब्याह के
कह दिया था पिता ने
विदाई के दिन ही कि
अब
यही है तुम्हारी नियति
तुम्हारा भाग्य भी
बेटी ने सवाल नहीं किया
बस
उसकी सजल आंखें विस्फारित तकती रहीं उन्हें समझने के लिये उनके शब्द
और खोजती रहीं अपने लिये स्नेह की दो बून्द
पिता की आंखें नम थीं
पर चेहरे पर उभरी खुशी के आगे
बहुत कम
जार जार रोते भी उसका एक कोना
सशंकित हो उठा
उसने पलट कर देखा जैसे खोज रही हो
सबकी आंखों में उससे बिछड्ने का दुख
खोज रही थी पिता में कुछ
किंतु
पिता मशगूल थे भाई के कन्धे पर हाथ रख
अपनी ही प्रशंसा में मां कोने में खडी तक रही थी
भाग्य की लकीरों में कुछ् उसने समझ लिया
थोडा थोडा
अपनी नियती का अर्थ और होंठ बुदबुदा उठे
बेटियां सबसे सौतेली क्यों?


उस दिन जब सब
हो गया बर्दाश्त के बाहर
बहुत रोयी थी वो फोन पर
फफक फफक पडी थी
अपना हाल कह कह
गिड्गिडायी भी थी बुला लो माँ बुला लो....................
फोन लटक गया माँ के हाथ से
और बोल पडी
बुला लो मेरी बेटी को
बुला लो
पर फोन हाथ में थाम्ह
पिता ने समझा दिया बेटी को
घर है अब वो तुम्हारा
सहना ही होगा सब
आज वो मर गयी
चर्चा है शहर में
आज फिर पिता की आंखें नम थीं
माँ बेहाल थी
पर
बहुतेरे सवाल थे
बहुतेरे सवाल

......................................... अलका

2 comments:

  1. स्त्री जीवन का कड़वा सच। बधाई....

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  2. उफ़ …………रौंगटे खडे करने वाला सच्। बेहद मार्मिक चित्रण किया है।

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