माँ के नाम रोज़ रोज़ लिखती रही हूँ एक चिट्ठी
वो देखती होगी मेरी चिट्ठी और मेरा तडपता हुआ मन शायद
आज् कडकती ठंढ में उसके हाथ का एक स्वेटर हाथ में है
जैसे उसने अभी अभी दिया हो पहनने के लिये
उसके गर्म प्यार से भरा ये आज माँ सा हो गया है
और मैं उसकी एक एक बुनावट में घुस
माँ के स्पर्श से सराबोर हो रही हूँ
जब वो बुनती मेरे लिये तो जैसे ख्वाब बुनती थी ढेरों
उसके फन्दे में फंसी मैं सवाल पर सवाल करती रहती
क्यों बुनती हो मेरे लिये ?
क्या मैं पहंकर सुन्दर लगूंगी?
कब तैयार होगा ?
और वो चुप्चाप बुनती रहती प्यार
जब बडी हुई जैसे बदल गया था मन
उसके हाथ के स्वेटर सुहाने बन्द हो गये
वो हर साल बुनती और मैं मुँह बिचका परे रख देती
बिना उसकी आंखों को पढे
वो हर साल सहेज के रख देती अपना प्यार
उन्हीं सहेजे हुए में से ये एक
आज मा सा हो गया है
आज माँ की आंखें याद आती हैं
सूनी सूनी मेरी ओर तकती
फिर खत लिखने का मन है
कि पहन लिया तुमहारा प्यार
और कि
तुम बहुत अच्छी हो माँ
बहुत अच्छी हो
........................................................................अलका
तुम बहुत अच्छी हो माँ
ReplyDeleteबहुत अच्छी हो माँ ...........बहुत सुंदर लिखा आपने ,और जहाँ माँ हो वहां पर सब सुंदर होता है
बहुत प्यारी यादे माँ से जुडी हुयी ............. उत्तम
ReplyDeleteबहुत प्यारी यादे माँ से जुडी हुयी ............. उत्तम
ReplyDeleteसच न जाने क्यूँ हम माँ के प्यार को उस वक्त समझ ही नहीं पाते जिस वक्त उसे सबसे ज्यादा जरूरत है कि उसे हम समझे और जब तक हमें समझ आता है अक्सर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वाकई हर माँ प्यारी होती है बहुत प्यारी ...:)
ReplyDeleteसच न जाने क्यूँ हम माँ के प्यार को उस वक्त समझ ही नहीं पाते जिस वक्त उसे सबसे ज्यादा जरूरत है कि उसे हम समझे और जब तक हमें समझ आता है अक्सर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वाकई हर माँ प्यारी होती है बहुत प्यारी ...:)
ReplyDeleteसच न जाने क्यूँ हम माँ के प्यार को उस वक्त समझ ही नहीं पाते जिस वक्त उसे सबसे ज्यादा जरूरत है कि उसे हम समझे और जब तक हमें समझ आता है अक्सर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वाकई हर माँ प्यारी होती है बहुत प्यारी ...:)
ReplyDeleteमाँ की ममता हमें तब समझ में आती है जब बहुत देर हो जाती है।
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