हमारे तुम्हारे रिश्ते की एक बड़ी सी सरहद है
जहाँ खड़े हैं बहुत से अपने और प्रभावित हैं उनकी जिंदगियां
इसलिए हरबार इस सरहद तक आकर रुक जाती हूँ मैं
झांकने लगती हूँ उनकी आँखों में
और तुम इस सरहद पर खड़े मुस्कुराते हो
मेरे मन की उधेड़बुन को पढ़
हमारे तुम्हारे बीच रिश्तों की खीचतान भले हो
पर मेरे अन्दर के इंसान ने बरसों बरस
इंसान की आँख पढ़ने की कला सीखी है
रोक लेती है वही शायद यहाँ तक आकर तलवार पर हाथ रख लेने से
रोक लेती है मुझे मुट्ठियाँ भींच लेने से
बहुत मुमकिन है तुम खुशफहमी में जीते हो
और सोचते हो कि ये सब होता रहता है
जैसे आम बात , जैसे रोज की बात
किन्तु मेरे अन्दर बहुत कुछ पल रहा है विष जैसा
जैसे एक काला नाग दिनों दिन बढ़ता सा
जो हर दम उठा लेता है फ़न
जैसे डसने को तैयार
कई रोज से देख रही हूँ कई आँख हर वक्त बस मुझे ताकती है
उनमे एक जोड़ी बूढ़ी आखें भी हैं
जैसे पढ़ रही हों मेरे अन्दर फ़न उठाते नाग को
उस विष् को जिसका जहर उतर जायेग तुमसे पहले उनके अन्दर
और बस् एक द्वंद लिपट जाता है जैसे
एक बहस सर उठाती है अच्छे बुरे के विचार से
मेरे अन्दर
इसलिए,
हमारे तुम्हारे बीच रिश्ते की जो सरहद है
वहां हर बार खडी होती हूँ कई आत्माओं के साथ
कई आँखों के सपने के साथ
किसी के बुढापे की लाठी बन और किसी के भविष्य की उम्मीद बन
और तुम
खुश हो जाते हो मेरी इंसानियत को मजबूरी समझ
पर ये नाग जो मेरे अन्दर पल रहा है
बहुत बावला है
तुम्हारी हरकतों के बदले में
हर रोज़ मुझे अपने साथ ले जाता है सेरेंगेती के जंगलों में
जहाँ इंसानियत की किताब की जगह सब केवल
अपने होने की भाषा समझते हैं
नहीं जानती कब तलक पढ़ पाउंगी
इंसानियत की किताब
हमारे तुम्हारे रिश्ते की जो एक बड़ी सी सरहद है
वहां बैठा है अब वो नाग
जो अब बित्ते भर से लाठी भर का हो गया है
...............................................डा. अलका सिंह ............................
बेहद गहन अभिव्यक्ति अलका जी……………अन्दर तक छू गयी।
ReplyDeletevaah
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