Wednesday, March 14, 2012

बेटे ने माँ से पूछा है

आज बेटे ने माँ से पूछा है
ये तुम्हारे चेहरे पर निशान कैसे हैं? कैसी है ये पीठ पर सांठ ? कल तो नहीं थी?
कल तुम्हारी आंखें सूजी भी नहीं थी ? ना ही कल तुम कहीं गिरी थी
फिर ?
रात धुत्त शराब में वह जल्लाध थे यह तो देखा था मैने
थाली पटकते भी देखा था
तुम्हारी कलाईयों को मडोड्ते भी देखा था
पर
ये चेहरे के निशान, ये सांठ , आंखों की ये सूजन? अचम्भे में हूँ
दुखी हूँ , असहनीय पीडा में हूँ
क्रोधित भी
क्या करूँ? तोड दूँ म्रर्यादा ?
तान दूँम भृकुटियाँ उनपर ?

दर्द में सुबकती सन्नाटे को भेदती एक आवाज गरजी
मैन निपट रही हूँ विरासत में दी गयी
अपने हिस्से की त्रासदियों से
बना रही हूँ एक ब्लू प्रिंट अगली पीढी को
टीपनुमा कुछ देने के लिये

अगर चाहता है कि
मेरे चेहरे से ये निशान जायें तो याद रख कि
आने वाली पीढियाँ इस घर में
ऐसा कोई दृश्य ना देखें
किसी माँ से फिर से तेरे जैसे सवाल ना पूछें
सुन
यह अकेले जिम्मेदारी तेरी है ऐसा मैं नहीं कहती
तू इसे गुन यह जरूरी है
तू इसे सुन ये भी जरूरी है
तस्वीर तो बदल ही जायेगी
एक दिन



.......................अलका

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