Tuesday, March 13, 2012

प्रेम की परिभाषाओं के बीच

एक बहुत पुरानी रचना ..........................आप सबकी नज़र


‘प्रेम’ करती रही थी
हर उस से जो मेरे आस पास था
हर पल जिनके साथ महसूस करती थी
अपनापन, दिल के करीब होने का मतलब
माँ-बाबा, भाई-बहन, चाचा-ताऊ, दादा-दादी और भी बहुत थे
इस प्रेम के दायरे में


अपने नन्हें हांथों से बडी हो गयी इन हथेलियों तक
सालों उनके आस पास बनी रही
बिना यह जाने कि इस परिधि के परे भी
प्रेम की परिभाषायें हैं
बिना यह जाने कि उस प्रेम का पडाव
हर किसी के जीवन में आता है
हौले से .
बिना यह जाने कि एक दिन
बडे हो गये इन हाथों से लिपटा वो प्रेम
मेरे विरोध में खडा हो जायेगा
जब अनुभूति बन वह प्रेम
दबे पाँव आयेगा

एक वो राजकुमार आयेगा
घोडे पर चढकर जिसके सपने होंगे राजकुमारी के मन में
वो ले जायेगा उस परी सी राजकुमारी को
ऐसा नानी कई बार सुनाया था
एक कहानी कह बचती रही थी
राजकुमार और राजकुमारी की प्रेम कहानी
सुनाने से
पर इस कहानी ने रोप दिया था
एक राजकुमार मेरे मन में भी


अज़ीब इंतज़ार था उस राजकुमार का
एक अज़ीब कसमसाहट उस प्रेम को जानने की
ना जाने कब
मुझे उसका आस पास होना अच्छा लगने लगा
उसका मुझे देखना अच्छा लगने लगा
प्रेम की नयी अनुभूति की आहट पर मुग्ध
समझने की कोशिश करने लगी थी
तमाम परिभाषा के बीच लिखने की मैं भी कोशिश करने लगी थी
एक अपनी परिभाषा प्रेम के समझ की
मेरे छत की मुडेर, बाहर वाला दरवाज़ा, खिडकियाँ
सब पर मेरी आंखें जैसे बैठ गयी थीं
साथ ही साथ
कुछ सवाल होंठों से चिपक गये थे
कि यही है वह प्रेम ?


एक दिन प्रेम की गहरी अनुभूति के बीच
साहस कर कह बैठी उससे –
अच्छे लगते हो मुझे तुम
बहुत अच्छे
प्यार करती हूँ तुमसे,,,,,,,,बहुत
यह एक उल्टा पहल थी एक स्त्री के मुँह से
प्रेम का कबूलनामा
आश्चर्य में डाल गया था उसे
आंखे चौडी कर पहले उसने मुझे पूरी आंखों से देखा
और खडा हो गया जैसे चलने को हो
पर अचानक पलट कर बोला
अच्छी तो तुम भी लगती हो मुझे
लेकिन दोस्त कहते हैं यह कहना तो
मर्द का काम है
लडकियाँ यह कहते अच्छी नहीं लगतीं
उन्हें इस बात का इंतज़ार करना चाहिये
कि कब कोई उसे
आई लव यू . कहता है
जब कोई जो उसे प्यार करता है – कहे कि
आई लव यू..
तो उसके चेहरे पर शर्म की चादर होनी चाहिये
यही तो भारतीय नारी की गरिमा है
प्रेम की इस नयी परिभाषा में
यह पहली गेंद थी
औरत की तरफ फेंकी गयी पहली बात
कि बोलना तुम्हारा काम नहीं
यह मेरे प्रेम की परिभाषा का राज कुमार नहीं था
ना ही यह मेरी परिभाषा के शब्द थे


वो जो मेरी आंखों में आंखे डाल
मेरे शब्दों को अपना कह
हाथ पकड लेगा
उसी के इंतज़ार में हूँ





......................अलका

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