Thursday, April 11, 2013

मेरे बचपन के दिन

सामंती व्यवस्था वाले इस गांव का पन्ना मेरी स्मृतियों में हमेशा कुछ इसी तरह की ही घटनाओं से खुलता है. कभी बचपन के दोस्त, कभी नानी, कभी अन्यों के साथ बनते – बिगडते रिश्तों और उसके अहसासों के पन्ने लिये जहन में तैरता रहता है.., मैं इन पन्नों को इस समय पकड की कवायद कर रही हूं......क्योंकि सामंती व्यवस्था वाले इस गांव , इस घर और यहां के लोगों के साथ मेरा जो आत्मीय रिश्ता था वह करीब होते हुए मेरे मस्तिष्क को सवाल करने के लिये मजबूर करता था ....................जैसे जैसे मेरी समझ विकसित होती गयी मैं इस घर के लोगों के साथ के अलग अलग रिश्तों के अर्थ को समझने के लिये दिमाग पर जोर देने लगी. उसी घर की एक बूडी इस घर को अपने पुरखों का पुरुषार्थ बताते हुए बखान करती और उसी घर से जुडे कई अन्य इस घर और हवेली को अपने लिये रोजगार की जगह बताते. मैं उनके वक्तव्यों, उसके मर्म और उसके अंतर को तब समझने में असमर्थ थी... लेकिन इतनी जरूर था कि मैं इन सभी को रेखांकित कर मां से इसका अर्थ पूछने से बाज नहीं आती थी ......... मां मुझे छोटी बच्ची समझ मेरे सवालों को शायद नज़रन्दाज़ कर देती ...या फिर मेरे छोटे दिमाग में बडी बातों का बोझ डालने से बचती थी.
इस गांव और इस हवेली से जुडे रिश्तों का बखान करते हुए नानी इसका एक गौरवशाली इतिहास बताती थी. उसके अनुसार मिर्जापुर जिले के रहने वाले दो सिपाहियों परस राय और परशुराम राय ने इस गांव को बसाया था. दोनो शिवाजी की सेना के बहुत बहादुर सिपाही थे. इन दोनो में से किसी एक को पूर्व के काला देव की उपाधि दी थी शिवा जी ने. सेना से निवृत्ति के बाद दोनो ने अपना राज्य स्थापित करने की इच्छा से बिहार के इस इलाके की तरफ आये. यहां आकर उनके मन को इतना सुकून मिला कि उन्होने इसका नाम अमन –उर यानि अमनौर् रख दिया और यहीं बस गये.
सही मायनों में देखा जाये तो यह इलाका प्राकृतिक रूप से बेहद खूब सूरत है. आम, लीची, जामुन , ताड और खज़ूर के पेडों और तमाम अन्य वनस्पतियों से लदा यह इलाका मन को बहुत आकर्षित करता है. वैसे भी आप जब उत्तर प्रदेश का बलिया जिला पार कर माझी के पुल पर पहुंचते हैं तो एक अलग ही अह्सास से भर उठते हैं और अमनौर तक पहुंचते पहुंचते यह अह्सास और भी अधिक घनीभूत हो जाता है.
इस राज्य और इसके इतिहास से जुडे कुछ साक्ष्य और किंवदंतियां भी हैं जिसे वहां पर रहने वाली एक खास जाति जिसे पवंरिया कहते हैं उनके पास सुरक्षित है. पवंरिया चारण और भांट टाईप की तरफ की एक जाति है जो कई अवसरों पर इस राज्य का गुङान करती है. जिसे पवांरा कहते हैं. वह इतिहास की इन सारी कथाओं को गा गा कर सुनाते हैं ( अब वह ऐसा करते हैं कि नहीं पता नहीं) मेरे बचपन तक यह परम्परा कायम थी और यह ही उनका रोजगार था. मैने अपने बचपन में अपने छोटे भाई के जन्म पर यह पंवारा देखा और सुना था...... अभी भी इसकी एक लाईन याद है जिसे अक्सर हम परिहास में गाते हैं कि ................महराज घर में बेटा भयेल बा शुभे लगना. ................इस गांव में कई ऐसी जगहें हैं जिसे यहां के राजपूत यहां के इतिहास के साक्षय के रूप में जोड्कर देखते हैं जो इन पवंरिया लोगों की कथाओं में भी सुरक्षित थे.
जैसा कि अक्सर इस तरह की किम्वदंतियों से जुडे गांव में होता है वैसे ही यहां भी गांव की बसाहट में था. गांव में अधिकत्र परिवार कर्मवार क्षत्रियों का है. इनके अनुसार उन्होने अन्य जातियों को प्रजा के रूप में बसाया है. इस तरह गांव की बसाहट में कुर्मी, यादव, ब्रहमन, माझी, दुसाध, मेहतर, लोहार, धोबी, तमोली, तेली, कानू, जायसवाल जैसी जितनी भी जातियां होती हैं सब थीं. मेरे बचपन तक यह सभी जातियां अपने अपने परम्परागत घन्धे के साथ जुडकर काम करती थीं. इन सभी जातियों के लिये यह हवेली दिन भर के रोजगार के लिये एक महतव्पूर्ण जगह थी.

3 comments:

  1. आपने तो मेरे बचपन की यादें भी ताज़ा कर दीं. सरयू नदी के तट पर बसा ये पूरा इलाका बचपन से ही मेरे लिये असीम शांति और आकर्षण का केंद्र रहा है. शायद इसका आकर्षण ही है कि पटना और अब दरभंगा में रहते हुए भी मुझे छपरा ज़िले का मेरा छोटा सा गांव बहुत याद आता है. वर्ष 2010 में सरयू नदी के तट पर डुमाई गढ़ (ताजपुर) में मैंने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था.अभी कुछ दिन पहले जब बिहार-यूपी सीमा पर दरौली (सिवान) गया था तो फिर से सरयू नदी के तट पर जाने से खुद को रोक नहीं पाया. सच में बहुत शांति मिलती है. ईश्वर करें कि जब मेरा भी अंत हो तो इसी सरयू तट पर मैं अंतिम गति को पाऊं. आप आगे भी लिखती रहें.

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  2. शुक्रिया विजय जी, आपने मेरे संस्मरण को इस तरह देखा महसूस किया , बहुत अच्छा लग रहा है पढकर ......आशा है आप आगे भी मेरी हौसलाअफज़ाई करते रहेंगे ....................

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  3. वाह! बहुत खूब | अत्यंत सुन्दर संस्मरण | नवरात्री और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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