Friday, January 25, 2013

बरसों से सोई नही है वो

मित्रों यह कविता गणतंत्र दिवस पर देश की उन महिलाओं को समर्पित है जो महिलाओं के प्रति समाज , सत्ता और अपने आस पासके लोगों की समझ बदलने के लिये संघर्ष कर रही हैं...............उन महिलाओं के नाम जो जेलों में अत्याचार सह्कर भी अपनी लडाई को आगे बडा रही हैं .......................यह कविता सोनी सोरी जैसी बहादुर महिला के नाम ........................................ 1. बरसों से सोई नही है वो ना ही मेरी आंखों में नीद है वो जब भी सिसक कर कराहती है मैं टहलने लगती हूं वो जब आह भरती है आंसूं मेरी आंखों से निकल पडते हैं वह जब भी , जहां भी लुटती है पिटती है गुम होती है , जीती है मरती है मैं आईने में अपना ही चेहरा देखती हूं क्योंकि हमारा एक नाता है एक रिश्ता एक ही भाषा है और एक ही लिंग स्त्रियां हैं हम 2. वह रोज लिखती है एक खत देश के नाम वह रिश्ता लिखती है नाता लिखती है दुख लिखती है पहाड लिखती है और मैं हर रोज उसे पढ सत्ता समझती हूं शक्ति समझती हूं देश समझती हूं क्योंकि वह खून लिखती है कत्ल लिखती है साजिश लिखती है हम दोनो गाहे बगाहे रोज पढते है एक दूसरे को अपनी अपनी सम्वेदना के साथ अपनी अपनी भाषा के साथ 3. आज उसने देश लिखा गणतंत्र लिखा है परेड लिखा है पुलिस लिखा है करतूत लिखी है अपनी आपबीती भी एक कतरा आंसू भी दबी दबी सिसकी भी पर् बांटने के लिये एक बारूद भरी कलम कुछ दहकते शब्द और कुछ पन्ने दिये है .........................अलका

1 comment:

  1. बहुत ही भावपूर्ण लिखा आपने,आपका धन्यबाद।

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