Sunday, January 8, 2012

लावारिसों की दुनिया

लावारिसों की दुनिया में कभी गये हैं आप ? जी हाँ वही जो पडॆ रहते हैं
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर
सडको के किनारे, अस्पतालों में
घाटों पर
यहां वहां , इधर उधर ?
देखा है कभी उनको बरसती रातों में
कपकापाती ठंढ में और चिलचिलाती गर्मियों में ? नहीं देखा है तो देख आइये
कुछ कदम चल
मह्सूस कीज़िये उनकी जिन्दगी और देश के सच को एक साथ
पूछिये खुद से सवाल क्योंकि
वो भी एक दुनिया है इंसानो की
जहां हर चीज़ के लाले हैं
हर मौसम खौफनाक् है
हर व्यवस्था ढीली है
और वो हालात से मजबूर् जी रहे हैं
क्योंकि नागरिक वो भी हैं कोई मह्सूस नहीं करता ना ही मह्सूस करता है उनके नागरिक अधिकार
इसलिये देख आइये देश का वो भी हिस्सा जो हमारे गौरव पर
टाट के पैबन्द सा है , एक बडा प्रश्ंचिन्ह है
देख आइये जाकर आज ही अपने शहर के अस्पताल में शहर के स्टॆशन पर इधर –उधर
हर जगह मिल जायेंगे बस देखिये तो जरा
आंख खोलकर
बहुत बडी दुनिया है उनकी भी
जहां लाचर और बीमार बूढे भी हैं
फूल से बच्चे भी, अपने होश खो चुकी औरतें भी हैं और बहुत युवा और युवतियां भी
सब हमारे आपके कारण की रहते हैं वहां
जीते हैं मौत हर दिन
बडे ही दर्दनाक स्वर में कराहती है मानवता यहां
न घर है ना खाना ना कपडे हैं यहां
बस देख आइये एक बार
देख आइये
पूछ आइये उनका हाल
लौट कर आप भी सवाल करेंगे
खुद से,
इस देश से और करोडों के हेर फेर वाले हमारे जन प्रतिनिधियों से
कि कौन हैं ये? और हैं इनके अधिकार ?
और ये भी कि क्या हम रहते हैं ऐसे देश में
जो कलाण्कारी राज्य है ? जरूर पूछेंगे ऐसे ही कुछ सवाल
जरूर पूछेंगे
........................................................... अलका

2 comments:

  1. अलकाजी,लावारिसो कि दुनिया पर आपने उनके दर्द. पीडा ,की ओर एक संवेद्ना ,और सरकार की उदासीनता पर अपनी संवेदनाओ को एक सुन्दर और प्रश्नचिन्ह लगाते हुए अच्छी अभिव्यक्ति की है ,इसके लिये आभार ।पन्तजी कि पंक्तिया मुझे याद आ रही है।
    " कोटि कोटि संतान नग्न तन ,
    अर्ध-क्षुधित,शोषित,निरस्त्र जन ,
    मूढ असभ्य अशिक्षित निर्धन ,

    नत मस्तक तरुतल निवासिनी,
    मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी ,
    वह अपने घर मे प्रवासिनी ,
    भारत माता ग्रामवासिनी । "

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  2. बिक्लुल झुंझला देने वाला लेख .......शरीर के रोंये खड़े हो गए पढ़ते पढ़ते ....
    बढ़िया लिखा बधाई...

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