Tuesday, August 30, 2011

मौन

मौन भी कैसा ग़दर है दोस्तों

शोर कैसा मच गया है देख लो

चुप सधी रणभेरियाँ हैं सड़क पर

दुन्दुभी बजने लगी है देख लो

चाक में पिसते थे दिन रात जो

जग के बैठे हैं पकड़ के आरियाँ

हाथ उनके फड़कते से बढ़ चले

बटवृक्ष कितने कांपते हैं देख लो

साज, सत्ता त्योरियां सब हिल रहीं

तर्जनी के भाव भी फीके पड़े

सड़क जिनके पाँव से यूं हिल रही

आज उनके भाव भी तुम देख लो

देख लो अनजान सी वो उँगलियाँ

देख लो अनजान सी वो त्योरियां

देख लो हर ओर आलम प्रश्न का

धार उनके आँख की भी देख लो

एक सी पदचाप है और एक से नारे लगे

आग उनके पाँव की भी देख लो

अब नहीं रुक्केगा ये हौसला

बढ़ चला है , बढ़ चला है बढ़ चला

रोक सकते हो तो आके रोक लो

मौन भी कैसा ग़दर है दोस्तों

शोर कैसा मच गया है देख लो

.......................... अलका

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