Sunday, February 26, 2012

ऊँचे ओहदे पर बैठी वह

1.

दफ्तर के सबसे ऊँचे ओहदे पर बैठी वह
कई आंख को चुभती है दिन - रात
लोग अक्सर कहनियां सुनाते हैं
एक दूसरे को उसके अतीत की
और बताते हैं राज
उसके ऊपर वाली कुर्सी पर बैठने के
किंतु वह निरंतर काम में लग्न
तोडती जाती है हर बाधा और बनाती जाती है
नया मुकाम
अभी कल ही जब उसे एक नया ओहदा मिला
बन गयी है फिर से
एक नयी कहानी

2.

जब वह नयी नयी दफ्तर में आयी थी
हर रोज लोग उसके इर्द गिर्द
घूमते थे
हौले हौले मुस्कुराते थे
नयी बास मैडम है
एक दूसरे को सूचना देते थे
जैसे समझाते थे कि
महिला है तो काम कम ही जानती होगी
यह भ्रम धीरे धीरे टूटने लगा
जब
काम में माहिर इमानदार बास ने
हर रोज अपनी समझ का परिचय दे
काम का हिसाब देना और लेना शुरु किया
और बस तब से
किस्से ही किस्से और हज़ारों कहानियां
कभी उसके चरित्र की, कभी आदतों की
और कभी उसके मुस्कुराने के मतलब की

3.

आज उसके ही चरित्र पर गढे गये
किस्सों की कुछ चिन्दियाँ
उड्कर उसके कान तक पहुँची
हैरान नहीं है फिर भी
खडी है चुप सोचती
कि इतने किस्सों के बीच
क्या मैं ही अकेली हूँ ?
या वो सब हैं जिनके परों ने
अभी अभी फड्फडाना सीखा है ? क्या जडों पर वार करने वाली इन कुल्हाडियों के बीच
निढाल हो जाना होगा ?
या फिर इन कुल्हाडियों की धार को
हर रोज भोथडा करना होगा
मजबूती से ?
डरना –घबराना तो नहीं ही होगा
इन स्थितियों के बीच
तेज़ ना ही सही किंतु
चलना तो होगा ही इन छींटों से अने सने
बढने के लिये

4.

आज दफ्तर में मीटिंग रखी है
उसमें कुछ सवाल रखे हैं
सामने सबके
कि
कौन हूँ मैं?
क्यों हूँ यहां?
क्या करती हूँ ?
यह तौहीन किसलिये ? ये किस्से किसलिये ?
और मांग रही है जवाब
एक सन्नाटा पसरा है
मीटिंग खत्म है और सब
व्यस्त हैं सवाल का जवाब
खोजने में
एक दूसरे से पूछ्ने में
सवालों के जवाब ...........

.......................................अलका

7 comments:

  1. क्या जड़ों पर वार करने वाली इन कुल्हाड़ियों के बीच .....' एक मजबूत रचना '

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया,किस्से कहानियां तो हर सफल औरत के पीछे खड़े रहते हैं.इस देश में औरत को बॉस मानने कि परंपरा नहीं फिर पंख फडफडाने वाली औरत को ये सब झेलना तो होगा.बहुत अच्छी कविता अलका जी बधाई

    ReplyDelete
  3. बिल्‍कुल सच लिखा आपने। दफ्तरों में काम करने वाली अधिकांश महिलाओं के साथ ऐसे हादसे जीवन भर चलते रहते हैं और बहुत कम हैं जो इसका मुकाबला कर पाती हैं।

    ReplyDelete
  4. यह परिकल्पना नहीं सच्चाई है जो कुशल लेखनी को पा कर और भी प्रभावशाली हो गयी है. आभार इस अहसास और संवेदनाओं को कुरेदने के लिए.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete