Thursday, March 1, 2012

अज्ञात - वास में है वह

जब भी लिखने बैठती हूँ कोई कविता
चुनती हूँ कोई विषय
बदहवास सी वह खडी हो जाती है सामने
आधी दुनिया का हरकारा बन
थम्हा देती है एक रुक्का और सदी भर का अखबार
‘अज्ञात - वास’ में है ‘वह’ कह

सबसे पहले उसके रुक्का पर नज़र गयी
‘मैं अज्ञात - वास में हूँ’
इस ‘मैं’ में हम सब शामिल हैं
लिखा है उसमें
मेरे अवचेतन पर जैसे कंकडी पड गयी हो रुक्के से
जैसे तन्द्रा से उठी होऊ अभी अभी
उचाट मन से अन्दर तूफानी हलचलों को ले
खडी हूँ सपाट
गुम हैं सारे शब्द

वह फिर सामने है इस बार खाली हाथ मौन की सशक्त भाषा ले
चुपचाप
मैं भी अंतस में एक गहरे सन्नते के साथ
खडी हूँ चुपचाप
दोनो के मौन आपस में बातें करते हैं
टकराते हैं प्रश्न
फूट पडता है एक प्रवाह
और वह शुरु हो जाती है घारा प्रवाह
‘अज्ञात वास’ के अर्थ के साथ
कहती है :

वह ‘अज्ञात वास’ में है
एक बरस से नहीं
कई सदी से
एक अंत हीन अज्ञात वास में
युद्धरत
और मैं


संतुष्ट नहीं हुई हूँ
अब तक लिखी किसी कथा से
संतुष्ट नहीं हुई हूँ
किसी व्याख्या से
बिल्कुल
संतुष्ट नहीं हुई हूँ
किसी भी तर्क-वितर्क से
आज तक


आज भी देखना है ये अज्ञात वास
तो देख लो
हर घर की खुली खिडकी से
घर के अन्दर का हाल
पढ लो यह अखबार
मिल जायेगा कच्चा चिट्ठा
एक एक सदी का और
एक एक पल का
पढ लो आकडे हत्या के, बलात्कार के
छले जाने के, घुटन के
रोज रोज बात बात पर पिटने के
हर जगह मिल जायेगा तुम्हें
एक अज्ञात –वास
जबरन दिया हुआ

क्या यह साहित्य और दुनिया का
सन्नाटा नहीं जब
एक हिस्से की कलम चुप रही हो
सदियों से और लिखा जाता रहा हो
उसका हिस्सा भी ‘उसकी’ कलम से
जो हिमयत में खडा हो
उसको दिये गये अज्ञात वास के ? ऐसे में तुम कैसे कर सकती हो विष्यांतर
जब सब कुछ बचा हो
तुम्हारे हिस्से का कहने को जब गाडी का एक पहिया
चलना ही नहीं सीख पाया हो
एक सदी से


देखना हो तो मुड कर देख लो
सारा का सारा वांग्मय
देख लो कथा कहानी
काव्य – महाकाव्य
सब जगह तुम हो पर तुम्हारी कलम नहीं
सब जगह तुम हो किंतु अपने गढे शब्दों से वंचित
सब जगह तुम हो किंतु .........अभी शेष है तुम होना
ऐसे में कैसे दे सकती हो प्रथमिकता
अपनी हिस्सेदारी के एवज में ?



किसी पिता ने नहीं पूछा
अपनी बेटी का अज्ञात वास
किसी भाई ने नही पूछा
अपनी बहन का अज्ञात वास
ना ही किसी पति ने कभी पूछा
अपनी पत्नी से उसका अज्ञात वास
क्या पूछा किसी पुरुष ने
प्रकृति से
कि कहा हो तुम ?
खडी है आधी आबादी लिखे जाने के इंतज़ार में
फिर कैसे ‘तुम्हारे हाथ’ की कलम
पहले कोई और गाथा ?


सुन रही हूँ सारे तर्क
हर बिन्दु पर सोच में हूँ
और
अभी हमारा सम्वाद जारी है
वक्त – बेवक्त ये चलता रहेगा
अनवरत
पर
मेरे हिस्से का
कहना अभी बाकी है
एक एक कर कहूँगी
इस
अज्ञात वास की कहानी
इस लम्बे
अज्ञात वास के बाद

.......................................अलका

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