औरत हूँ , एक जहमत हूँ, फसाना हूँ सुना है
चल आज से अपने मन की दुनिया शुरू करें
वो कहते हैं अज़ीब जात है समझा नहीं कोई
चल आज उनकी नासमझी पर बातें शुरू करें
गुण जो भी है अपने वो दोष नहीं है
लगते हों कुछ को छोड अब रस्ता नया करें
पाप और प्रेम के गोलों में उलझने से बेहतर
इंसां हैं इस फितरत से रहना शुरु करें
कह दी है अपनी बात जितनी थी जरूरी
अब हक से ‘मेरा हक’ भी है कहना शुरु करें
कहती नहीं कि अब अपना ही सिक्का चलेगा
क्या होगी कहानी ये लिखना तो शुरु करें
पाया है जो भी अब तक अच्छा –बुरा वो भूल
आंखों में आंखें डाल आ अब चलना शुरु करें
...........................अलका
very deep... thought invoking kavita.... best wishes
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