मौन भी कैसा ग़दर है दोस्तों
शोर कैसा मच गया है देख लो
चुप सधी रणभेरियाँ हैं सड़क पर
दुन्दुभी बजने लगी है देख लो
चाक में पिसते थे दिन रात जो
जग के बैठे हैं पकड़ के आरियाँ
हाथ उनके फड़कते से बढ़ चले
बटवृक्ष कितने कांपते हैं देख लो
साज, सत्ता त्योरियां सब हिल रहीं
तर्जनी के भाव भी फीके पड़े
सड़क जिनके पाँव से यूं हिल रही
आज उनके भाव भी तुम देख लो
देख लो अनजान सी वो उँगलियाँ
देख लो अनजान सी वो त्योरियां
देख लो हर ओर आलम प्रश्न का
धार उनके आँख की भी देख लो
एक सी पदचाप है और एक से नारे लगे
आग उनके पाँव की भी देख लो
अब नहीं रुक्केगा ये हौसला
बढ़ चला है , बढ़ चला है बढ़ चला
रोक सकते हो तो आके रोक लो
मौन भी कैसा ग़दर है दोस्तों
शोर कैसा मच गया है देख लो
.......................... अलका
No comments:
Post a Comment