Thursday, April 5, 2012

मेरी कलम भी बोलती है निरंतर

मैं उससे कहना चाह रहा था कि -

‘’हम किसी विषय पर बोल देंगे
बुलाओ तो सही
हम किसी विषय पर लिख देंगे
छापो तो सही
सिलसिला बस यूँ ही चलते रहना चाहिये
ताकि जिन्दा रहें हम
सिलसिला बस यूँ ही बने रहना चाहिये
ताकि मिलते रहें हम
आगे बढना अब मवाकों का तकाज़ा है
यह इंतज़ार करने का वक्त बचा नहीं
कि कोई आमंत्रित करेगा मेरी बात सुनेगा और वाह वाह कर
सम्मानित करेगा .....’’

वह आवाक, अपलक मुझे ऐसे निहार रहा था
जैसे जमाने से आदमजात को देखा ही ना हो
ना ही देखा हो मेरे जैसे लालची को
जिसे छपने की इतनी ललक थी
जिसे बोलने की इतनी इच्छा ?

मैने उससे फिर कहा

तुम सोच रहे हो ना कि यह कैसा लेखक है सोच रहे हो ना कि यह कैसी ललक है
बिना रीढ का नहीं हूँ मैं
किंतु शराफत के साथ इस इंतज़ार में
लिखता रहा कि
कभी तो किसी की नज़र पडेगी
कोई बुलायेगा एक मौका देगा
पर
अब बिना कहे नहीं रहना चाहता
और ना ही
बिना छपे क्योंकि
अपनी कलम भी
बोलती है , कुछ कहती है
उसे पहुंचाने के लिये
सब तक
लेना चाहता हूँ एक रिस्क
क्योंकि
मेरी कलम भी बोलती है निरंतर
शब्द शब्द तोडती है किला
और हर गुजरते साल के साथ
मजबूत हो कमर कस लेती है
बहुत कुछ कहने को
बहुत कुछ लिखने को


.........................................एक लम्बी कविता का अंश

2 comments:

  1. बहुत कुछ कहा! बहुत कुछ लिखा...बधाई

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  2. वाकई आपकी कलम से लिखा एक एक शब्द तोड़ता है किला....................

    बहुत खूब.

    अनु

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